आशय स्पष्ट कीजिए।

इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अंदर भी नहीं देख पाता।

गुरुदेव जब अपने कुत्ते की पीठ पर हाथ फेरते हैं तो कुत्ते का रोम-रोम स्नेह का अनुभव करता है। तब ऐसा लगता है मानों उसके अतृप्त मन को उस स्पर्श से तृप्ति मिल गई हो। भले कुत्ते के पास इसे बताने के लिए वाणी नहीं है लेकिन कवि की दृष्टि उसके मर्म को समझ जाती है। साधारण मनुष्य इस भावना का अनुभव नहीं कर पाते हैं। ऐसे में कवि ने एक मूक पशु की भावनाओं का अनुभव कर लिया।


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